bird ringing station|bird ringing station in bihar|operation prahar in bihar:देश में गिद्धों की आबादी 1980 के दशक में 4 करोड़ थी, जो 2017 तक घटकर मात्र 19,000 रह गई. इसके चलते पारसी समुदाय के बीच अंतिम संस्कार का तरीका बदला है|गिद्धों की घटती आबादी के चलते पारसी समुदाय को शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में भी बदलाव करना पड़ा है. दरअसल, टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के साथ ही यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया. पारसी समुदाय के लोगों के शवों को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ पर छोड़ने की परंपरा रही है, जहां गिद्ध इन शवों को खा जाते हैं, लेकिन अब गिद्धों की संख्या घटने से इसमें अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव हो रहे हैं.
दरअसल, साल 2015 से पारसी समुदाय के बीच अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव आया है और मुंबई में इलेक्ट्रिक शवदाह गृह के जरिए अंतिम संस्कार के कई मामले सामने आए हैं. पारसी धर्म की तय रस्मों को पूरा करने के बाद पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक मशीन के हवाले कर दिया जाता है. साइरस मिस्त्री के अंतिम संस्कार के दौरान भी यही देखा गया|
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रिपोर्ट के अनुसार, देश में गिद्धों की आबादी 1980 के दशक में 4 करोड़ थी, जो 2017 तक घटकर मात्र 19,000 रह गई. इसके चलते पारसी समुदाय के बीच अंतिम संस्कार का तरीका बदला है. सरकार ने गिद्धों की आबादी में गिरावट को रोकने के लिए राष्ट्रीय गिद्ध संरक्षण कार्य योजना 2020-25 के माध्यम से एक पहल शुरू की है, जिसमें कुछ सफलताएं मिली हैं|
गिद्धों की आबादी में गिरावट के लिए मवेशियों के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली सूजन-रोधी दवा ‘डाइक्लोफेनाक’ के इस्तेमाल को जिम्मेदार ठहराया गया है. दरअसल जिन मवेशियों को यह दवा दी गई, उन मवेशियों को मरने के बाद गिद्धों ने खा लिया, जिससे गिद्धों की आबादी प्रभावित हुई.
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पर्यावरण बचाने के लिए बिहार में गिद्धों के संवर्धन (संख्या बढ़ाने) का फैसला बिहार सरकार ने लिया है। इसको लेकर सुपौल व वाल्मिकी टाइगर रिजर्व को वल्चर सेफ जोन के लिए चिह्नित किया गया है। गिद्ध के संवर्धन को लेकर अगले माह तक प्रस्ताव तैयार कर भारत सरकार को भेजा जाएगा। भारत सरकार ने नेपाल के सौ किलोमीटर के रेडियंस में वल्चर सेफ जोन बनाने के लिए बिहार सरकार से प्रस्ताव मांगा है। नेपाल में गिद्धों की अच्छी संख्या है।लेकिन, बिहार में तो शायद ही कभी गिद्ध दिखते हैं।
पर्यावरण एवं वन विभाग बिहार के उच्च स्तरीय अधिकारी का कहना है सुपौल में जिस स्थान को वल्चर सेफ जोन के लिए चिन्हित किया गया है। वह नेपाल से ठीक सटा हुआ है। अक्सर वहां नेपाल से गिद्धों का आना-जाना लगा रहता है। इसी तरह की स्थिति वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की भी है। वल्चर सेफ जोन बनाने की शर्त होती है कि 10 किमी क्षेत्रफल में पशुओं को दी जानेवाली दर्दनाशक दवा का इस्तेमाल न हो। पहले चरण में वल्चर इंटरप्रेटेशन सेंटर (गिद्ध व्याख्या केंद्र) बनाया जाएगा।
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गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने के लिए एक नई शुरुआत की जा रही है. पूरे देश में से गायब होते गिद्धों को संरक्षित करने के लिए एक योजना के तहत अब काम करने की तैयारी है. देश भर में 99 प्रतिशत गिद्ध विलुप्त हो चुके हैं. ऐसे में बिहार में भी बचे हुए गिद्धों को संरक्षित करने की योजना का प्रस्ताव आया है|
पश्चिमी चंपारण जिले के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीआरटी) के क्षेत्र निदेशक एच के राय ने बताया कि हाल के एक सर्वेक्षण के दौरान वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में कुछ स्थानों पर गिद्धों के घोंसले पाए गए हैं. उन्होंने कहा कि ये घोंसले यह साबित करते हैं कि यहां गिद्धों का बसेरा है और यह क्षेत्र उन्हें पसंद आ रहा है. उन्होंने साफ लहजे में कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम वीटीआर में उनकी संख्या नहीं बढ़ा सकते|
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बिहार सरकार को इसे लेकर भेजा गया प्रस्ताव
उन्होंने कहा कि हम गिद्धों की अन्य प्रजातियों के बीच हिमालयी ग्रिफॉन गिद्ध की इस क्षेत्र में संख्या बढ़ाने और उन्हें आकर्षित करने के उपाय करने को लेकर योजना बनाई है. उन्होंने बताया गिद्ध संरक्षण केंद्र को लेकर एक प्रस्ताव भी बिहार सरकार को भेजा गया है. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वीटीआर के मदनपुर, गोनौली, हरनाटांड और भिखनाथोरी क्षेत्रों में गिद्धों को घोंसला पाया गया है. ऐसे में यह तय माना जाना चाहिए कि यह स्थान गिद्धों के संरक्षण के लिए अनुकूल है. सर्वेक्षण से उत्साहित वन अधिकारियों ने उनकी आबादी की सुरक्षा और नियमित निगरानी के लिए गिद्ध ट्रैकर्स की तैनाती का अनुरोध किया है. भेजे गए प्रस्ताव में गिद्धों के संरक्षण के अन्य उपायों के अलावा, वाच टावर, बचाव उपकरण, दवाएं और गिद्ध के देखभाल की सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ ही जल संचयन संरचनाओं जैसे बांध, वाटरहोल और तालाबों के निर्माण की भी बात कही गई है|
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गिद्ध संरक्षण प्रोजेक्ट
- गिद्ध संरक्षण प्रोजेक्ट गिद्धों के संरक्षण एवं अभिवृद्धि के लिए हरियाणा वन विभाग तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के बीच एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर सन् 2006 में हस्ताक्षर हुआ हैं।
- राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड (NBWL) ने गिद्धों के संरक्षण की योजना को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत गिद्धों के लिए जहर बन रही मवेशियों के इलाज में प्रयोग की जाने वाली दवाओं को भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल द्वारा प्रतिबंधित किया जाएगा।
- भारत में अधिकांश गिद्धों की मृत्यु पशुओं को दी जाने वाली ‘डायक्लोफेनेक, नानस्टीरोइडल एण्टीइनफ्लेमेटरी ड्रग‘ के उपयोग के कारण होती है।
- एशिया से समाप्त हो रहे गिद्धों के संरक्षण के लिए ‘सेव‘ नामक कार्यक्रम को आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य गिद्धों को समाप्त होने से बचाना है।
- इस कार्यक्रम के तहत 30,000 वर्ग किमी. के सुरक्षित क्षेत्र (जो हानिकारक दवाओं से मुक्त हों) में गिद्धों को संरक्षित किया जाएगा।
- इसके तहत पशुओं को दी जाने वाली दवा ‘डायक्लोफेनेक‘ पर प्रतिबंध लगा दिया गया जिसके कारण गिद्धों की मौत हो रही थी।
- देश में गिद्धों की तेजी से घटती संख्या को देखते हुए जूनागढ़, भोपाल, हैदराबाद तथा भुवनेश्वर में गिद्ध संरक्षण परियोजना की शुरूआत की गई है।
- असोम के धरमपुल में देश का पहला ‘गिद्ध प्रजनन केन्द्र‘ स्थापित किया जा रहा है।
- भारत में पिंजौर (हरियाणा), राजभटखावा (पश्चिम बंगाल) तथा रानी (असोम) में तीन गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र सफलतापूर्वक संचालित है।