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Vijaya Ekadashi Vrat Katha 2025: विजया एकादशी व्रत कथा, इसका पाठ करने पर ही पूर्ण होता है आपका व्रत, असंभव कार्य भी हो जाते हैं संभव

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विजया एकादशी पर व्रत रखने वालों के लिए खास नियम हैं। सुबह नहाकर साफ कपड़े पहनें। भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीपक जलाकर पूजा करें। विजया एकादशी के दिन व्रत रखने से भक्तों को शुभ फल मिलता है। इसलिए लोग विष्णु जी की पूजा करते हैं। विजया एकादशी का व्रत करने से आपको असंभव से दिखने वाले काम को पूरा करने में भी सफलता मिलती है। अगर आप विजया एकादशी का व्रत करते हैं तो आपके लिए इस कथा का पाठ करना बहुत ही जरूरी माना जाता है। आइए जानते हैं पद्म पुराण में दी गई विजया एकादशी की व्रत कथा विस्‍तार से।

विजया एकादशी का दिन अपने आप में बहुत शुभ माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। यह शुभ पर्व हर साल फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ता है। इस साल यह 24 फरवरी को मनाया जाएगा। कहते हैं कि इस दिन जो लोग उपवास (Vijaya Ekadashi Vrat 2025) रखते हैं, उन्हें सभी पूजा नियमों का पालन करना चाहिए और इसकी व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। तभी यह व्रत पूर्ण माना जाता है, तो आइए यहां इस दिव्य कथा का पाठ करते हैं।

Vijaya Ekadashi Vrat Katha 2025

एक समय की बात है, जब त्रेता युग में भगवान राम अपनी वानर सेना के साथ सीता जी को बचाने की तैयार कर रहे थे, उनका सामने समुद्र लांघने और रावण पर विजय प्राप्त करने का बड़ा लक्ष्य था। इसके लिए भगवान श्रीराम ने वकदाल्भ्य मुनि को अपनी समस्या बताई और इसका हल पूछा। इस पर ऋषि वकदाल्भ्य ने श्रीराम को सेना सहित फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर व्रत करने को कहा।

ऋषि के कहे अनुसार, श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान जी के साथ-साथ समस्त वानर सेना ने भी व्रत किया और पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पर एकादशी माता प्रसन्न हुईं और उन्होंने सभी को दर्शन दिए, साथ ही युद्ध में विजय का आशीर्वाद भी प्रदान किया।

विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से राम जी की सेना को रावण के साथ युद्ध में विजय मिली। साथ ही तभी से इस पावन व्रत की शुरुआत हुई।

विजया एकादशी की व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha)

युधिष्ठिरने पूछा- वासुदेव ! फाल्गुन के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपा करके बताइये।

नारद ! सुनो- ‘मैं एक उत्तम कथा सुनाता हूं, जो पापोंका अपहरण करने वाली है। यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पापनाशक है। यह ‘विजया’ नामकी एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। पूर्वकाल की बात है, भगवान् श्रीरामचन्द्रजी चौदह वर्ष के लिये वन में गये और वहां पंचवटी में सीता तथा लक्ष्मण के साथ रहने लगे। वहां रहते समय रावण ने चपलतावश विजयात्मा श्रीराम की तपस्विनी पत्नी सीता को हर लिया। उस दुःखसे श्रीराम व्याकुल हो उठे। उस समय सीता की खोज करते हुए वे वन में घूमने लगे। कुछ दूर जाने पर उन्हें जटायु मिले, जिनकी आयु समाप्त हो चुकी थी।

इसके बाद उन्होंने वन के भीतर कबन्ध नामक राक्षस का वध किया। फिर सुग्रीव के साथ उनकी मित्रता हुई। तत्पश्चात् श्रीराम के लिए वानरों की सेना एकत्रित हुई। हनुमान‌जी ने लंका के उद्यान में जाकर सीताजीका दर्शन किया और उन्हें श्रीरामकी चिह्न स्वरूप मुद्रिका प्रदान की। यह उन्होंने महान् पुरुषार्थ का काम किया था। वहां से लौटकर वे श्रीरामचन्द्रजी से मिले और लंका का सारा समाचार उनसे निवेदन किया। हनुमान ‌जी को बात सुनकर श्रीरामने सुग्रीव की अनुमति ले लंका को प्रस्थान करने का विचार किया और समुद्र के किनारे पहुंचकर उन्होंने लक्ष्मण से कहा- ‘सुमित्रानन्दन। किस पुण्य से इस समुद्र को पार किया जा सकता है? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है। मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके।

लक्ष्मण बोले– महाराज! आप ही आदि देव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं। आप से क्या छिपा है? यहाँ द्वीप के भीतर बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं। यहाँ से आधे योजन की दूरी पर उनका आश्रम है। रघुनन्दन । उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हीं से इसका उपाय पूछिए।

लक्ष्मण की यह अत्यन्त सुन्दर बात सुनकर श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्यसे मिलने के लिये गये। वहां पहुंचकर उन्होंने मस्तक झुकाकर मुनि को प्रणाम किया। मुनि उनको देखते ही पहचान गये कि ये पुराण पुरुषोत्तम श्रीराम हैं, जो किसी कारणवश मानव शरीर में अवतीर्ण हुए हैं। उनके आने से महर्षि को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने पूछा- ‘श्रीराम आपका कैसे यहां आगमन हुआ ?’

श्रीराम बोले- ब्राह्मण। आपकी कृपा से लंका को जीतने के लिये सेना के साथ समुद्र के किनारे आया हूँ। मुने। अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, वह उपाय बताइये। मुझ पर कृपा कीजिये।

बकदाल्‍भ्‍य ने कहा– श्रीराम फाल्गुन के कृष्ण पक्ष में जो ‘विजया’ नामकी एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी। निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे। राजन्। अब इस व्रत को फलदायक विधि सुनिए। दशमी का दिन आने पर एक कलश स्थापित करें। वह सोने, चांदी, तांबा अथवा मिट्टी का भी हो सकता है। उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें। उसके ऊपर भगवान् नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें।

फिर एकादशी के दिन प्रातःकाल स्‍नान करें और कलश को पुनः स्थिरतापूर्वक स्थापित करें। माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रूप से उसका पूजन करें। कलश के ऊपर सप्‍तधान्‍य और जौ रखें। गन्ध, धूप, दीप और भाँति-भाँति के नैवेद्य से पूजन करें। कलश के सामने बैठकर वह सारा दिन उत्तम कथा-वार्ता आदि के द्वारा व्यतीत करें तथा रात में भी वहां जागरण करें। अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिये घी का दीपक जाये। फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप – नदी, झरने या पोखरे के तटपर ले जाकर स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव-प्रतिमा सहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिये दान कर दें। महाराज ! कलश के साथ ही और भी बड़े बड़े दान देने चाहिए। श्रीराम! आप अपने यूधपतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्‍नपूर्वक ‘विजया’का व्रत कीजिये। इससे आपकी विजय होगी।

ब्रह्माजी कहते हैं– नारद। यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया’ एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए। उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया। बेटा। जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं– युधिष्ठिर। इस कारण ‘विजया’ एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।